वह संजय गांधी की मौत के लिए खुद को दोषी क्यों मानती रहीं?उनका मानना था कि संजय गांधी की मौत चामुंडा देवी को नाराज करने के कारण हुई थीइंदिरा के नाम पर लगातार चढ़ाया जाता था प्रसाद, इसके लिए लिफाफे में भेजती थीं पैसे
इंदिरा गांधी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में चामुंडा देवी शक्ति पीठ की कट्टर अनुयायी थीं। वे वहां न केवल नियमित रूप से पूजा करने जाती थीं बल्कि उनके नाम पर वहां एक दीया भी जलाया जाता था। एक बार इंदिरा गांधी ने वहां जाने की योजना बनाई लेकिन किसी कारणवश नहीं जा सकीं। इससे वहां के पुजारी नाराज हो गए। अगले ही दिन उनके बेटे संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई। इंदिरा को लगा कि शायद चामुंडा देवी नाराज हो गई हैं। उन्होंने अपनी दोस्त पुपुल जयकर से यहां तक कहा कि संजय की मौत उनकी गलती की वजह से हुई।
एक ज्योतिषी ने उन्हें चेतावनी दी थी कि संजय की कुंडली में ‘छोटी जीवन रेखा’ दिखाई दे रही है। इससे वे बहुत परेशान हो गईं। इससे वे अत्यधिक धार्मिक हो गईं। निवारण के लिए उन्हें चामुंडा देवी की शरण लेने का सुझाव दिया गया। 1977 के बाद से वे कांगड़ा में इस शक्ति पीठ पर जाने लगीं।
13 दिसंबर 1980 को इंदिरा गांधी को लेकर एक हेलीकॉप्टर कांगड़ा के योल कैंप में उतरा। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री राम लाल अपने मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री का स्वागत करने के लिए वहां मौजूद थे। वह संजय गांधी की याद में प्रार्थना करने आई थीं, जिनकी उस साल 23 जून को एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
सोलहवीं शताब्दी के इस मंदिर में हर साल हज़ारों भक्त आते हैं। चामुंडा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक है। चामुंडा देवी मंदिर समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर है। चामुंडा देवी मंदिर बंकर नदी के तट पर स्थित है। चामुंडा देवी मंदिर माता काली को समर्पित है। राक्षस चंड-मुंड का वध करने के कारण माता का नाम चामुंडा पड़ा।
उनके नाम पर प्रसाद कैसे चढ़ाया गया?
इंदिरा गांधी देवी में बहुत आस्था रखती थीं। 1984 में उनकी मृत्यु तक मंदिर में उनके नाम पर नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती थी। प्रसाद को फिर दिल्ली में उनके पास वापस ले जाया जाता था। इसके लिए उन्होंने अपने एक करीबी व्यक्ति को नियुक्त किया था, जिसे वह देवी को चढ़ावा चढ़ाने और प्रार्थना करने के लिए लिफाफे में पैसे देती थीं। हर दो महीने में वह उसे मंदिर के लिए 101 रुपये देती थीं।
संजय और इंदिरा का चामुंडा जाने का कार्यक्रम तय हो चुका था
दरअसल, संजय गांधी की मौत से एक दिन पहले इंदिरा गांधी को अपने बेटे के साथ चामुंडा आना था। 1980 में चुनाव जीतकर वे फिर प्रधानमंत्री बन गई थीं। उन्हें याद दिलाया गया कि मैडम, आपको चामुंडा देवी जाना है। वे व्यस्त थीं, लेकिन उन्होंने 22 जून 1980 को चामुंडा देवी जाने का कार्यक्रम बनाया।
उनके कार्यक्रम की जानकारी राज्य सरकार को दे दी गई थी। मंदिर में उनकी मौजूदगी में पूजा-अर्चना के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे। इस बारे में मशहूर पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में विस्तार से लिखा है।
मैसेज आया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम रद्द हो गया, पुजारी भड़क गए
20 जून की शाम को चामुंडा के पास संदेश आया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम रद्द हो गया है। मुख्यमंत्री रामलाल समेत पूरी हिमाचल प्रदेश सरकार वहां डेरा डाले हुए थी। वे उनका इंतजार कर रहे थे। जब पुजारी को पता चला कि वे नहीं आ रही हैं, तो उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, ‘आप इंदिरा गांधी से कहिए, यह चामुंडा है। अगर कोई साधारण व्यक्ति नहीं आ पाता है, तो मां माफ कर देती हैं। लेकिन अगर शासक अनादर करता है, तो देवी माफ नहीं करती हैं। आप देवी का अनादर नहीं कर सकते।’
और फिर अगले दिन यह दुर्घटना घटी
इंदिरा गांधी के करीबी सहयोगी पंडित जी ने उन्हें शांत करने की कोशिश की और कहा कि उनके न आने का कोई कारण तो होगा ही। ‘उनके न आने का कोई अच्छा कारण तो होगा ही।’ 22 तारीख को इंदिरा की अनुपस्थिति में पूजा और कीर्तन किया गया। अगली सुबह दिल्ली में इंदिरा गांधी के करीबी सहयोगी अनिल बाली शहर से चले गए। जैसे ही समूह 50 किलोमीटर आगे ज्वाला मुखी मंदिर पहुंचा, बाली के सचिव दौड़ते हुए आए।
संजय गांधी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया
उन्होंने कहा, ‘संजय गांधी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और पाकिस्तान रेडियो इसका प्रसारण कर रहा है।’ 33 वर्षीय संजय ने हवाई करतब दिखाते हुए विमान पर से नियंत्रण खो दिया। इसके बाद उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उनकी मौके पर ही मौत हो गई। मेनका एक दिन पहले संजय गांधी के साथ इसी विमान में आई थीं, जिन्हें वे हवाई करतब दिखाने के लिए ले गए थे। संजय गांधी ने जिस तरह से विमान को हवा में हवाई करतब दिखाया, उससे मेनका हैरान रह गईं। वह इसे रोकने के लिए चिल्लाती रहीं लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।
घर लौटते ही मेनका सबसे पहले अपनी सास इंदिरा गांधी के पास दौड़ी और बोली, ‘मैंने अपनी जिंदगी में आपसे कभी कुछ नहीं मांगा। लेकिन कृपया संजय से कहिए कि वह ‘यह’ विमान दोबारा न उड़ाए।’
इंदिरा ने पूछा- क्या इसका संबंध मेरे चामुंडा न जाने से है?
संजय की मौत की खबर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। अनिल बाली और कपिल मोहन का परिवार (जो चामुंडा मंदिर में थे) दिल्ली लौट आए। बाली सीधे इंदिरा गांधी के आवास पर गए। जब वे पहुंचे तो रात के 2.30 बज रहे थे। इंदिरा शव के पास बैठी थीं। उन्होंने उनकी तरफ देखा। वे उनसे बात करने के लिए उठीं।
उन्होंने बाली से पूछा, ‘क्या इसका मेरे चामुंडा न जाने से कोई संबंध है?’
‘मैडम,’ बाली ने उसे शांत करने की कोशिश की, ‘यह समय (इस बारे में बात करने का) नहीं है। मैं आपको बाद में बताऊंगा।’
फिर उसने फिर पूछा कि उस दिन चामुंडा में क्या हुआ था?
चौथे दिन जब बाली 1, अकबर रोड पहुंचे, तो इंदिरा गांधी के साथ सुनील दत्त और उनकी अभिनेत्री पत्नी नरगिस भी थीं। इंदिरा ने बाली को इशारा किया। वह उन्हें एक तरफ ले गईं और बोलीं, “अब बताओ क्या हुआ था।” बाली ने उन्हें बताया कि उस दिन क्या हुआ था जब उन्हें चामुंडा मंदिर पहुंचना था। सभी उनका इंतजार कर रहे थे। जब वह नहीं आईं तो मुख्य पुजारी ने क्या कहा था।
इंदिरा को नहीं पता कार्यक्रम किसने रद्द किया
तब इंदिरा ने जवाब दिया, ‘पता नहीं मेरा कार्यक्रम किसने रद्द कर दिया।’ उस दिन उन्हें जम्मू से चामुंडा आना था। संजय उनके साथ थे। वे मंदिर में दर्शन करने के लिए उनके साथ जाने वाले थे। बताया गया कि मौसम खराब हो गया है। चामुंडा में बहुत तेज बारिश हो रही है। आने वाले कुछ घंटों में हेलीकॉप्टर वहां नहीं उतर पाएगा। इसलिए उन्होंने एक दिन पहले ही दिल्ली लौटने का फैसला किया।
तब चौंके हुए बाली ने जवाब दिया कि चामुंडा में मौसम खराब नहीं था। बारिश भी नहीं हो रही थी। किसी ने जानबूझकर उन्हें चामुंडा की यात्रा स्थगित करवा दी थी। बाद में इंदिरा ने पुपुल जयकर को बताया कि संजय की मौत असल में उनकी गलती थी। वह चामुंडा देवी मंदिर नहीं गईं और न ही वे अनुष्ठान और प्रार्थनाएं कीं जो वह करना चाहती थीं।
और दुर्घटना के बाद वह पुनः चामुंडा चली गई
संजय की मौत के कई महीनों बाद इंदिरा गांधी के राजनीतिक सहयोगी एमएल फोतेदार ने बाली को फोन किया। फोतेदार ने कहा, “प्रधानमंत्री आपसे मिलना चाहते हैं। कृपया सुबह 7.30 बजे वहां पहुंचें।”
जैसे ही बाली पहुंचे, उन्हें अंदर ले जाया गया। हालांकि उस समय इंदिरा गांधी ने अपने बाल रंगे हुए थे, लेकिन वे तुरंत मुद्दे पर आ गईं। उन्होंने बाली से कहा, ‘मैं चामुंडा जाना चाहती हूं।’ उन्होंने बाली से जरूरी इंतजाम करने को कहा।
वह रोती रही और रोती रही
13 दिसंबर 1980 को वे चामुंडा मंदिर गईं। ‘जब वे पूजा कर रही थीं, तो पुजारी के हाथ कांप रहे थे।’ उन्होंने पूर्णाहुति के मंत्र पढ़े। उन्होंने गर्भगृह में सिर झुकाया। उन्होंने काली पूजा पूरी तरह से की। इसके बाद वे रोने लगीं। वे रोती रहीं और रोती रहीं।
बाली ने याद किया, ‘मुझे याद है कि पंडित ने कहा था कि वह रोती हुई आएगी।’ पुजारी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘अब तुम्हारी 60 करोड़ बेटियां हैं। तुम उन्हें देखो और आज के बाद रोना मत।’ उन्होंने सुनिश्चित किया कि संजय के नाम पर चामुंडा में एक घाट बनाया जाए।
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पहले प्रकाशित : 22 जुलाई, 2024, 19:40 IST