मंडी. हिमाचल प्रदेश की मंडी संसदीय क्षेत्र (Mandi Lok Sabha Seat) देश की सबसे हॉट सीट में शुमार हो गया है. लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने यहां से बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत (Kangana Ranaut) को टिकट दिया. अहम बात यह है कि मंडी लोकसभा सीट का इतिहास बेहद ही रोचक है. हिमाचल प्रदेश की इस सीट को राजाओं और रजवाड़ों की सीट कहा जाता है. हालांकि, रोचक बात यह है कि इस सीट पर राजा और रजवाड़ों को आम नेताओं ने हराकर इतिहास भी रचा है और देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. मौजूदा समय में भी इस सीट पर राज-परिवार का ही कब्जा है.
दरअसल, 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो उस वक्त राजाओं के राज भी समाप्त हो गया. शासन और प्रशासन के पास सारी बागडोर आ गई और भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में सामने आया, लेकिन आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में राजाओं और रजवाड़ों का साम्राज्य समाप्त नहीं हुआ है.
देश की राजनीति में आज भी राज परिवारों का दबदबा देखने को मिलता है. इस दबदबे का गवाह हिमाचल प्रदेश का मंडी संसदीय क्षेत्र भी है. मंडी संसदीय क्षेत्र, क्षेत्रफल के लिहाज से देश की दूसरा सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है और हिमाचल प्रदेश का आधा भाग इसी के तहत आता है. इसमें राजाओं के जमाने की पांच प्रमुख रियासतें आती हैं जिनमें मंडी, सुकेत, कुल्लू, लाहुल स्पिति और रामपुर बुशैहर रियासत शामिल है.
13 बार राजपरिवारों के पास रही यह सीट
साल 1952 में जब पहली बार देश में लोकसभा के आम चुनाव हुए तो इस सीट से दो सांसद चुने गए. एक थी रानी अमृत कौर, जो पटियाला राजघराने की राजकुमारी थी और दूसरे थे गोपी राम. गोपी राम दलित समुदाय के प्रतिनिधि थे. उस वक्त दलितों की आबादी के लिहाज से दो सांसद चुने जाने की व्यवस्था थी. रानी अमृत कौर न सिर्फ मंडी से पहली सांसद चुनी गई. बल्कि देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री भी बनी. वह कांग्रेस पार्टी से संबंध रखती थी. इसके बाद, 1957 में जो चुनाव हुए, उसमें कांग्रेस पार्टी ने मंडी रियासत के राजा रहे जोगिंद्र सेन को टिकट दिया और वह जीतकर संसद पहुंचे. 1962 और 67 में सुकेत रियासत के राजा ललित सेन को टिकट दिया गया और दोनों ही बार वह जीतकर संसद पहुंचे. 1971 में रामपुर बुशैहर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह को कांग्रेस पार्टी ने मंडी सीट से टिकट दिया और उन्होंने भी जीत हासिल करके देश की संसद में कदम रखा. यहीं से, वीरभद्र सिंह की राजनैतिक पारी की शुरूआत हुई और वह कई बार सांसद और 6 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. इसके बाद, बारी आई कुल्लू रियासत के राजा महेश्वर सिंह की. साल 1989 के चुनावों में भाजपा ने महेश्वर सिंह को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल करके अपनी रियासत के लोगों का सपना पूरा किया.
प्रतिभा सिंह ने भी आजमाया भाग्य
1998 में रामपुर बुशैहर की रानी प्रतिभा सिंह ने राजनीति में कदम रखा और मंडी सीट से चुनावी मैदान में उतरी. लेकिन वह पहला चुनाव हार गई. उन्हें भाजपा के महेश्वर सिंह ने ही हराया. 2004 में कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को फिर से मौका दिया और इस बार उन्होंने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 2009 में फिर से वीरभद्र सिंह मैदान में उतरे और जीत हासिल की, जबकि उनके सीएम बनने के बाद खाली हुई. इस सीट पर उनकी धर्मपत्नी ने ही 2013 में उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2014 के चुनावों में रानी प्रतिभा सिंह को भाजपा के साधारण कार्यकर्ता कहे जाने वाले पंडित राम स्वरूप शर्मा ने हरा दिया. लेकिन 2021 में उनके निधन के कारण खाली हुई इस सीट पर फिर से उपचुनाव हुए तो प्रतिभा सिंह फिर से यहां की सांसद चुनी गई और मौजूदा समय में यही यहां का प्रतिनिधित्व भी कर रही हैं.
कुल 19 बार हुए हैं चुनाव
मंडी संसदीय सीट पर 17 चुनाव और दो उपचुनाव हुए, जिसमें से 13 बार राज परिवारों के सदस्यों ने जीत हासिल की जबकि मात्र 6 बार ही आम नेता चुनकर आ सके. राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह सीट अधिकतर राज परिवारों के पास ही रही और आज भी इस सीट पर राज परिवारों का आधिपत्य पूरी तरह से बरकरार है.
6 बार आम आदमी ने राज परिवारों को चटाई धूल
राजाओं रजवाड़ों की यह सीट 13 बार राज परिवारों के पास रही, लेकिन पांच अवसर ऐसे भी आए जब राजाओं महाराजाओं को आम नेताओं ने धूल चटाकर इतिहास रचा. इस सीट पर हार का सामना करने वाले सबसे पहले राजा थे वीरभद्र सिंह. 1977 में जब देश भर में जनता दल की लहर चल रही थी तो उस लहर में वीरभद्र सिंह का किला भी ढह गया. बीएलडी के गंगा सिंह ने वीरभद्र सिंह को हराकर नया इतिहास रचा. हालांकि, 1980 में हुए चुनावों में फिर से वीरभद्र सिंह ने जीत हासिल कर ली, इसके बाद 1991 में पंडित सुखराम ने कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह को हराया.
सुखराम कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े जबकि महेश्वर सिंह भाजपा के टिकट पर. 1998, 2004 और 2009 में दो राजपरिवारों के बीच ही मुकाबला हुआ. 1998 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए महेश्वर सिंह ने रानी प्रतिभा सिंह को हरा दिया. 2004 में प्रतिभा सिंह ने हार का बदला लेते हुए महेश्वर सिंह को धूल चटा दी. 2009 में वीरभद्र सिंह बनाम महेश्वर सिंह मुकाबला और दोनों में कड़ा मुकाबला हुआ और इसमें वीरभद्र सिंह मात्र 13 हजार मतों से विजयी हुए. वहीं, 2014 के चुनावों में साधारण परिवार से संबंध रखने वाले राम स्वरूप शर्मा ने रानी प्रतिभा सिंह को मोदी लहर में हरा दिया. पूर्व सीएम एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर भी इस सीट पर 2013 में हुए उपचुनाव को लड़ चुके हैं. उन्हें प्रतिभा सिंह ने 1 लाख 35 हजार मतों के अंतर से हराया था.
पंडित सुखराम का भी इस सीट पर खासा दबदबा
राजाओं और रजवाड़ों की सीट होने के साथ-साथ इस सीट पर कांग्रेस का भी अधिक कब्जा रहा. महेश्वर सिंह को छोड़कर राज परिवारों के जितने भी सदस्य इस सीट से चुनावी दंगल में उतरे उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव लड़ा. स्व. पंडित सुखराम ने भी इस सीट पर अपना खूब दबदबा रखा और कई बार केंद्र में मंत्री बने. आज भी पंडित सुखराम का इस सीट पर एक अलग जनाधार मौजूद है. 2019 में उनके पोते आश्रय शर्मा यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली और 4 लाख 5 हजार मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.
राजपूतों और दलितों का वोट ज्यादा लेकिन निर्णायक रहा ब्राह्मणों का वोट
मंडी संसदीय के तहत मंडी, कुल्लू, लाहुल स्पिति, किन्नौर, शिमला और चंबा जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इन 17 विधानसभा क्षेत्रों में 33.6 फीसदी राजपूत जबकि 29.85 फीसदी अनुसूचित जाति का वोट है. तीसरे नंबर पर 21.4 फीसदी के साथ ब्राह्मणों का वोट बैंक है. इस सीट पर हमेशा ही राजपूतों और ब्राह्मणों का कब्जा रहा है. सिर्फ एक बार देश के पहले चुनाव में दलित को यहां से सांसद बनने का मौका मिला था. 1952 के लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के गोपी राम सांसद चुने गए थे. वह अनुसूचित जाति से थे. मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले 17 विधानसभा क्षेत्रों में से पांच विधानसभा क्षेत्र रामपुर, आनी, बल्ह, नाचन व करसोग अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. संसदीय सीट का इतिहास बताता है कि यहां दो ब्राह्मण नेता पंडित सुखराम और रामस्वरूप ही गद्दी संभाल सके हैं. इसके अलावा हमेशा बागडोर राजपूतों के हाथ ही रही है.
क्षेत्रफल के हिसाब से देश का दूसरा सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है मंडी
मंडी संसदीय क्षेत्र क्षेत्रफल के हिसाब से देश का दूसरा सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है. पहले स्थान पर राजस्थान का वाडमेर है जबकि दूसरे स्थान पर मंडी का नाम आता है. इस संसदीय क्षेत्र में प्रदेश का आधा भाग आता है. प्रदेश के 6 जिलों के 17 विधानसभा क्षेत्र इसमें आते हैं जिसमें मंडी, कुल्लू, लाहुल स्पिति, शिमला, किन्नौर और चंबा जिला के क्षेत्र शामिल हैं. प्रदेश का जनजातिय क्षेत्र इसी संसदीय सीट में शामिल है. इस संसदीय क्षेत्र का एक हिस्सा जम्मू कश्मीर के साथ लगता है तो दूसरा उत्तराखंड के साथ. लद्दाख और पड़ोसी राज्य चीन के साथ भी इस संसदीय क्षेत्र की सीमाएं लगती हैं.

कभी विपक्ष में नहीं बैठता था मंडी का सांसद, लेकिन उपचुनावों में टूटी रिवायत
मंडी संसदीय क्षेत्र को लेकर एक इतिहास रहा है. कभी भी मंडी का सांसद विपक्ष में नहीं बैठता था. देश में जितने भी चुनाव हुए और मंडी से जिस भी दल का सांसद चुनकर गया केंद्र में उसी दल की सरकार बनी, लेकिन यह रिवायत 2021 में हुए उपचुनावों में टूट गई। 2019 में सांसद चुनकर गए राम स्वरूप शर्मा का देहांत हो गया और इस कारण यह सीट खाली हो गई. जब यहां उपचुनाव करवाया गया तो लोगों ने कांग्रेस की प्रतिभा सिंह को जीताकर भेज दिया. यह पहला मौका है जब केंद्र में किसी दूसरे दल की सरकार है और मंडी का सांसद विपक्ष में बैठा हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : March 26, 2024, 16:59 IST