Saturday, March 15, 2025
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Maharashtra: This Election Will Decide Political Status Of Thackeray And Pawar In Changed Political Scenario – Amar Ujala Hindi News Live


Maharashtra: This election will decide political status of Thackeray and Pawar in changed political scenario

Maharashtra: शरद पवार और उद्धव ठाकरे
– फोटो : PTI (File Photo)

विस्तार


साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। कोविड-19 महामारी के बाद राज्य में नगर निकाय के चुनाव भी नहीं हुए। कोरोना के बाद पहली बार सूबे में विपक्षी दल महा विकास आघाड़ी (एमवीए) और सत्तारूढ़ दल महायुति के बीच सीधी टक्वकर होनी है। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद हो रहे लोकसभा चुनाव में पवार और ठाकरे की जमीनी पकड़ की पैमाइश होनी है। लोकसभा चुनाव उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए मायने रखते हैं क्योंकि यह चुनाव ठाकरे और पवार का राजनीतिक कद भी तय करेगा।

साल 2019-24 के बीच की अवधि में महाराष्ट्र में राजनीतिक ताकतों का पुनर्गठन हुआ है। आने वाले दिनों में इस पर और अधिक मंथन होने वाला है। कोरोना महामारी के बाद महाराष्ट्र में 29 महानगरपालिका के चुनाव नहीं हुए, जहां राज्य की 13 करोड़ आबादी का 60-65 फीसदी हैं। मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के अलावा महानगर क्षेत्र की आठ अन्य महानगरपालिका ठाणे, वसई-विरार, मीरा-भायंदर, कल्याण-डोंबिवली, नवी मुंबई के अलावा पुणे, पिंपरी-चिंचवड़, पनवेल, नासिक, औरंगाबाद, नागपुर और अमरावती महानगरपालिका के चुनाव का मामला अदालत में लंबित हैं। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन होने से कई बड़े और दिग्गज नेताओं ने पाला बदला है। ऐसा होने से शहरों में किसकी जमीन कितनी मजबूत है, इसका वास्तविक आंकलन नहीं किया जा सका है। इसलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि सूबे में होने वाले पांच चरण के चुनाव में काफी आश्चर्यजनक बदलाव देखने को मिल सकता है।

उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र दूसरा अहम राज्य हैं जहां सर्वाधिक लोकसभा की 48 सीटें हैं। प्रदेश में दो प्रमुख राजनीतिक धुरी है। एक भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति और दूसरा विपक्षी दलों के समूह का INDI गठबंधन, जिसे महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी (एमवीए) के रूप में जाना जाता है। वैसे भी राज्य में पहले भी दो ही गठबंधन थे शिवसेना-भाजपा और कांग्रेस-एनसीपी। अब भी देखा जाए तो गठबंधन दो ही आमने-सामने हैं, विपक्ष की महा आघाड़ी और सत्तारूढ़ दल की महायुति। उसमें पार्टियों की संख्या बढ़ गई है। लेकिन मुख्य सियासी धुरी कांग्रेस और भाजपा ही है। पर, मजेदार बात यह है कि आघाड़ी व महायुति में दोनों तरफ दोनों क्षेत्रीय दल एनसीपी और शिवसेना भी शामिल है।

लोकसभा चुनाव उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए इसलिए महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं, क्योंकि एनसीपी और शिवसेना में विभाजन के बाद पहली बार असली और नकली की पहचान जनता की अदालत में होने जा रही है। चुनाव नतीजे से दोनों की ताकत का पता चलेगा। दूसरी ओर, महायुति में शामिल शिवसेना का नेतृत्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और एनसीपी का नेतृत्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार कर रहे हैं। महा विकास आघाड़ी की उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार गिरने के बाद एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी हुई। वहीं, भाजपा आलाकमान के निर्देश पर देवेंद्र फडणवीस को नंबर दो का स्थान यानि उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी। पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद फडणवीस भले ही उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन यह चर्चा आम है कि फडणवीस ही असली सरकार हैं। वह भाजपा के संकटमोचक भी कहे जाते हैं।

इन तीन चुनावों में बदल गया सियासी समीकरण

जब साल 2009 में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान दूसरी बार लोकसभा चुनाव हुए थे, तब कांग्रेस और अविभाजित एनसीपी ने महाराष्ट्र में क्रमशः 17 और 8 सीटें जीतीं थीं, जबकि भाजपा और शिवसेना को क्रमशः 9 और 11 सीटों पर जीत मिली थी। अन्य निर्दलीय को तीन सीटें मिलीं थीं। लेकिन 2014 में देश का सियासी मिजाज बदला, तो महाराष्ट्र में भी मोदी लहर देखी गई। उस समय, भाजपा और अविभाजित शिवसेना वाले भगवा गठबंधन ने क्रमशः 23 और 18 सीटें जीतीं थीं, जबकि निर्दलीय व अन्य को एक सीट मिली थी।

2019 में भी कमोवेश यही स्थिति रही। भाजपा और शिवसेना ने क्रमशः 23 और 18 सीटें जीतीं, कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई, जबकि एनसीपी पांच और निर्दलीय व अन्य दो सीटों पर जीते। लोकसभा चुनावों के बाद अक्तूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा से नाता तोड़ कर अविभाजित शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस का एमवीए गठबंधन बनाया। शरद पवार इसके शिल्पकार बने, तो उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद कोरोना महामारी का दौर शुरू हुआ। महामारी की वजह से भाजपा ने ठाकरे सरकार को अस्थिर करने का प्रयास नहीं किया, लेकिन कोरोना के बाद जून-जुलाई 2022 में ऑपरेशन लोटस चला और शिवसेना दो फाड़ हो गई। उसके एक साल के बाद जून-जुलाई 2023 में एनसीपी को भी इसी तरह के विभाजन का सामना करना पड़ा।



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