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मुंबई21 मिनट पहले
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AI जनरेटेड फोटो
महाराष्ट्र के सोलापुर में सोमवार को गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के 9 और केस सामने आए हैं। इससे मरीजों की संख्या बढ़कर 110 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक इन मरीजों में 73 पुरुष और 37 महिलाएं शामिल हैं। जबकि 17 मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं।
इससे पहले 26 जनवरी को सोलापुर के रहने वाले 40 साल के शख्स की मौत इसी GB सिंड्रोम से पीड़ित होने के कारण हुई थी, इसकी पुष्टि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने भी की।
सोलापुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजीव ठाकुर के मुताबिक मरीज को सांस फूलने, निचले अंगों में कमजोरी और दस्त जैसे लक्षण थे। उसे 18 जनवरी से लगातार वेंटिलेटर सपोर्ट पर था।
डीन ने बताया कि मौत के कारणों का पता लगाने के लिए क्लिनिकल पोस्टमार्टम किया गया। जिसमें वजह GB सिंड्रोम बताई गई। जांच के लिए ब्लड सैंपल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) भेजा गया है।
शहर के अलग-अलग हिस्सों से 34 वाटर सैंपल भी कैमिकल और बायोलॉजिक एनालिसिस के लिए पब्लिक हेल्थ लैब भेजे गए। इनमें से सात सैंपल में पानी के दूषित होने की सूचना मिली है।
गौरतलब है कि पुणे में 9 जनवरी को अस्पताल में भर्ती मरीज GBS पॉजिटिव आया था, यह पहला केस था। 19 दिन में एक्टिव केस बढ़ गए हैं।
राज्य सरकार ने 2 काम किए
- पुणे नगर निगम ने कमला नेहरू अस्पताल में 45 बिस्तरों का स्पेशल वार्ड बनाया है।
- यहां भर्ती होने वाले सभी मरीजों का इलाज पूरी तरह मुफ्त होगा।
जीबी सिंड्रोम- 6 जरूरी सवाल और उनके जवाब
- जीबी सिंड्रोम क्या होता है- यह दुर्लभ ऑटोइम्यून स्थिति है। इसमें प्रतिरक्षा प्रणाली मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी से निकलकर शरीर के बाकी हिस्सों में फैली हुई नसों पर हमला करती है।
- इसके लक्षण क्या होते हैं- इसमें सुन्नता, झुनझुनी, दस्त, मांसपेशियों में कमजोरी जैसे लक्षण होते हैं, जो पक्षाघात (मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम होना) तक बढ़ सकते हैं। हर 3 में से एक पीड़ित को सांस लेने में मुश्किल होती है। बोलने और निगलने में कठिनाई। आंखों को हिलाने में दिक्कत होती हैं।
- लक्षण कब दिखते हैं- 70% लोगों में लक्षण 1 से 6 सप्ताह में दिखने शुरू हो गए थे। कुछ में चंद घंटों में दिखते हैं।
- किन्हें ज्यादा खतरा है- जीबी सिंड्रोम किसी भी उम्र में हो सकता है, पर यह आमतौर पर 30 से 50 वर्ष के बीच के लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है।
- कितना खतरनाक है- इसमें जीवन प्रत्याशा सामान्य होती है। 2% से भी कम लाेगाें की जान जाती है। ज्यादातर लोग लक्षण शुरू होने के दो से तीन हफ्ते में ठीक होने लगते हैं। ज्यादा गंभीर केस में कई महीने से लेकर एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग सकता है।
- बचाव का क्या तरीका है- हाथ बार-बार धोएं। उन लोगों से दूर रहें, जिन्हें फ्लू या अन्य संक्रमण हो। स्वस्थ आहार लें। नियमित व्यायाम करें। टेबल, काउंटरटॉप, खिलौने, दरवाजे के हैंडल, फोन व बाथरूम के सामान आदि को साफ रखें।

स्वास्थ्य विभाग ने 35 हजार से ज्यादा घरों की जांच की
सोलापुर में स्वास्थ्य विभाग की टीमें मरीजों की जांच के लिए सर्वे कर रही हैं। अब तक कुल 35,068 घरों का सर्वे किया जा चुका है। इनमें पुणे नगर निगम के 23,017 घर, पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम के 4,441 घर और ग्रामीण क्षेत्रों के 7610 घर शामिल हैं।
स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने भी खुलासा किया कि GB सिंड्रोम के 80% मामले सिंहगढ़ रोड पर नांदेड़ गांव में एक बड़े कुएं के आसपास के इलाकों से रिपोर्ट किए गए हैं।
NIV को 44 स्टूल सैंपल भेजे गए हैं। सभी का एंटरिक वायरस पैनल टेस्ट किया गया। इनमें से 14 नोरोवायरस पॉजिटिव और 5 कैम्पिलोबैक्टर पॉजिटिव हैं। कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया, जो आमतौर पर पेट में संक्रमण का कारण बनता है, GBS रोग को ट्रिगर करता है। इस बैक्टीरिया से दूषित पानी पीने से नर्व डिसऑर्डर का खतरा बढ़ सकता है।
इसके अलावा NIV को 59 ब्लड सैंपल भी जांच के लिए भेजे गए थे। ये सभी जीका, डेंगू, चिकनगुनिया नेगेटिव मिले।
महाराष्ट्र सरकार की मदद करने केंद्र ने भेजी टीम
GBS के बढ़ते मामलों को लेकर केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार की मदद के लिए हाई लेवल स्पेशलिस्ट टीम भेजी है। स्वास्थ मंत्रालय की इस 7 सदस्यों वाली टीम में टीम में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) दिल्ली, निमहंस बेंगलुरु, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के क्षेत्रीय कार्यालय और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे के विशेषज्ञ शामिल हैं।
हालांकि राज्य सरकार ने भी GB सिंड्रोम से बचने के लिए लोगों को सलाह दी है कि वे उबला हुआ पानी पिएं। ठंडा खाना खाने से बचें।
इलाज भी महंगा, एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार
GBS का इलाज भी महंगा है। डॉक्टरों के मुताबिक मरीजों को आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन लगवाना पड़ता है। निजी अस्पताल में एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपए है। पुणे के अस्पताल में भर्ती 68 साल के मरीज के परिजन ने बताया कि इलाज के दौरान पेशेंट को 13 इंजेक्शन लगाने पड़े थे।
डॉक्टरों ने मुताबिक GBS की चपेट में आए 80% मरीज अस्पताल से छुट्टी के बाद 6 महीने में बिना किसी सपोर्ट के चलने-फिरने लगते हैं। लेकिन कई मामलों में मरीज को एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग जाता है।

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