
खंडवा में रंगपंचमी
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खंडवा जिले में जामली सैयद गांव के पास स्थित सैलानी दरगाह में रंगपंचमी पर भूतों का एक ऐसा मेला लगता है, जिसमें आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि बाबा के सामने भूत-प्रेत कांपते हैं। और उनकी जाली पकड़ते ही भूत अपना जुर्म भी कबूल कर लेते हैं। यही नहीं, यहां आने वाले लोगों का कहना है कि बाबा भूतों को सजा भी देते हैं। इसलिए इस दरगाह पर भूत, प्रेत और बाहरी बाधाओं से पीड़ित लोग मुक्ति के लिए आते हैं।
बता दें कि यहां आने वाले अधिकांश लोग वे होते हैं, जो अस्पताल और डॉक्टरों के इलाज से थक हार कर हताश हो जाते हैं। यह दरगाह साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी मानी जाती है। यहां हिन्दू कैलेंडर की तिथि के अनुसार, होली से रंगपंचमी तक यह मेला लगता है। यहां आने वाले लोगों का ऐसा मानना है कि इन पांच दिनों में बाबा की विशेष चादर पेश की जाती है, और जिन लोगों को यहां से फायदा होता है, वह भी हर साल यहां हाजिरी लगाने आते हैं।
बता दें कि इस 21वीं सदी में भी हमारे देश में तंत्र-मंत्र और भूत-प्रेतों की एक अलग ही दुनिया मानी जाती है। जहां लोग बखूबी आज भी आस्था और श्रद्धा से सिर झुकाते हैं। खंडवा से करीब 26 किलोमीटर दूर स्थित जावर गांव के पास सैलानी बाबा की दरगाह भी ऐसी ही एक जगह है, जहां होली से लेकर रंगपंचमी तक भूतों की अदालत लगती है। यहां बाबा की दरगाह पर भूतों की पेशी होती है। दरगाह के परिसर में आते ही पीड़ितों की अजीब हरकत और आवाजों से अलग ही मंजर दिखाई देता है। बाहरी बाधा से परेशान लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। वहीं, नरसिंहपुर से आये श्रद्धालु राजू गौड़ का कहना है कि बाबा की इस अदालत में बाहरी बाधाओं और भूत प्रेत से पीड़ित लोगों की हाजरी लगती है। जहां बुरी आत्माओं को सैलानी बाबा स्वयं सजा देकर शरीर से बाहर निकालते हैं, जिन्हें फायदा होता है, वे लोग भी यहां हाजिरी लगाने हर साल आते हैं।
बाहरी आत्माओं से पीड़ितों की होती है पेशी
मिली जानकारी के अनुसार, सैलानी बाबा की यह दरगाह करीब सौ साल पुरानी है। जो बुलढाना के फकीर मकदूम शाह सैलानी की है। कहा जाता है कि जिन शरीरों पर बुरी आत्माओं ने अपना कब्जा जमा लिया हो, जिनके आगे हर तंत्र-मंत्र फेल हो गया हो। ऐसे ही बुरी नजर और बाहरी आत्माओं से पीड़ित लोगों की यहां पेशी होती है। यहां आने के बाद बड़े से बड़ा शैतान भी बाबा के सामने सरेंडर हो जाता है। बाबा इन आत्माओं को शरीर से अलग कर लोगों को मुक्ति दिलाते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने डॉक्टरी इलाज में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, आखिरकार फायदा बाबा के यहां से ही मिला।
मुर्गे और बकरे के रूप में लाते हैं मन्नत
वहीं, दरगाह के खादिम अनवर खान ने बताया कि 1939 में स्थापित बाबा की इस दरगाह में होली से लेकर रंगपंचमी तक देश भर से हजारों लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता है। देशभर से आए लोग यहां तम्बू बनाकर कई दिनों तक रहते हैं। मान्यता है कि पांच गुरुवार नियमित यहां आने से पीड़ितों को फायदा होता है। कुछ लोग अपने अच्छा होने की मन्नत लेकर भी आती है और बली के रूप में मुर्गे और बकरे को भी साथ लाते हैं, और बाबा के नाम पर यहीं छोड़ जाते हैं।