लोकसभा चुनाव में दो चरण का मतदान हो चुका है। अगले चरणों से पहले उम्मीदवार तय किए जा रहे हैं। नेताओं के पार्टी बदलने का सिलसिला चल रहा है। वहीं, दागदार नेता भी सुर्खियों में हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजनीति में सबकुछ सिर्फ वोट बैंक को देखकर तय होता है? इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इसी मुद्दे पर चर्चा हुई। चर्चा के वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, समीर चौगांवकर, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।
विनोद अग्निहोत्री: सारे राजनीतिक दलों के अंदर दोहरे मानदंड हैं। मेरी कमीज सफेद, तुम्हारी दागदार। कांग्रेस हो, भाजपा हो या दूसरी कोई पार्टी, सभी राजनीतिक दल महिलाओं के प्रति अपराध को लेकर दोहरा मापदंड अपनाते हैं। बृजभूषण शरण के मामले में मेरा मानना है कि भाजपा नेतृत्व की ओर से चूक हुई है।
अवधेश कुमार: कर्नाटक में जो घटना हुई है, उस मामले में सभी दलों को विरोध करना चाहिए। वहीं, बृजभूषण शरण सिंह के मामले में मेरा मनना है कि अगर पार्टी को लगता है कि उनके ऊपर लगे आरोपों में सच्चाई नहीं है तो भाजपा को साहस के साथ बृजभूषण को ही टिकट देना चाहिए था। वहीं, अगर पार्टी उन्हें दोषी मानती है तो उनके साथ-साथ उनके परिवार के भी किसी सदस्य को टिकट नहीं देना चाहिए था।
अनुराग वर्मा: चुनाव के समय पार्टियां सारे आरोप किनारे रखकर सिर्फ जीत और हार को देखती हैं। यह बताता है कि हम महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर कितने संजीदा हैं। भ्रष्टाचार का मामला हो या महिला अपराध का मामला हो, बड़े-बड़े नेता जेल गए। यहां तक कि दोषी साबित होने के बाद भी उनकी राजनीति पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। हमारा समाज ही इस तरह के आरोपी नेताओं को जिताकर भेजता है।
पूर्णिमा त्रिपाठी: बृजभूषण की जगह उनके बेटे को टिकट देकर भाजपा किस तरह का संदेश दे रही है? पार्टी डबल इंजन मैजिक की बात करती है। उसके बाद भी बृजभूषण शरण सिंह के सामने भाजपा ने आत्मसमर्पण क्यों किया, यह सोचना चाहिए?
रामकृपाल सिंह: राजनीति में होता है साम-दाम-दंड-भेद, जीत किसी भी कीमत पर। वहां, नैतिकता को ढूंढना बेमानी है। राजनीतिक दलों में हम-आप जरूर नैतिकता ढूंढते हैं, लेकिन पार्टियों में कोई नैतिकता को नहीं देखता है। चुनिंदा वर्ग की नैतिकता और व्यापक वर्ग की नैतिकता में छत्तीस का आंकड़ा होता है। भाजपा या कांग्रेस कोई भी हो, राजनीतिक दल अपनी जीत की कीमत पर नैतिकता की बात करेंगे, मैं यह नहीं मानता हूं।