
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
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ईरान ने इस्राइल पर मिसाइल, ड्रोन से हमला क्या किया, शेयर बाजार के भाव रंग दिखाने लगे। डॉलर को थोड़ी मजबूती मिल गई। मंगलवार को 83.61 रुपये प्रति डॉलर के साथ रुपया सबसे निचले पायदान पर चला गया। हालांकि आज 12 पैसे की उछाल के साथ प्रति डॉलर रुपये का भाव 83.49 है, लेकिन ईरान और इस्राइल के बीच में लंबा खिंचने वाले युद्ध की आशंका दुनिया के कई देशों की चिंता को बढ़ा रही है। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल बलविंदर सिंह संधू कहते हैं कि यह हालात बने रहे, तो पश्चिम एशिया में शरणार्थियों की संख्या के साथ-साथ अपराध की स्थिति बदलेगी। यूरोप पर दबाव बढ़ेगा और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
हालांकि पूर्व एयर वाइस मार्शल एनबी सिंह का कहना है कि ईरान ने अपनी स्थिति साफ कर दी है कि एक अप्रैल को सीरिया के अपने वाणिज्यिक दूतावास हुए हमले के विरोध में आत्मरक्षार्थ सशस्त्र कार्रवाई की है। ईरान के इस हमले में इस्राइल को मामूली सा नुकसान हुआ है। जबकि इस्राइल के हमले में ईरान के जनरल समेत अन्य मारे गए। पूर्व एयर वाइस मार्शल का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि अब आगे इस्राइल ईरान पर हमला करेगा और ईरान प्रतिक्रिया में इस्राइल पर हमला करेगा? क्योंकि ईरान को पता है कि इस्राइल के साथ अमेरिका खुलकर खड़ा है। जबकि ईरान के साथ लड़ाई के मैदान में खुलकर आने वाला कोई देश नहीं है।
अभी हो रही है संतुलन बनाने की कोशिश
भारतीय राजनयिक ने कहा कि इस्राइल और ईरान के बीच में अभी तनातनी जैसी स्थिति बनी हुई है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतेन्याहू अभी हालात का आंकलन कर रहे हैं। सूत्र का कहना है कि जी-7 देशों ने ईरान पर अपना दबाव बढ़ा दिया है। अमेरिका ने अपने जीपीएस सिस्टम को बंद करके ईरान को संदेश दे दिया। जबकि ऑपरेशन पराक्रम के दौरान अमेरिका ने ऐसा करने से परहेज किया था। पूर्व एयर वाइस मार्शन एनबी सिंह कहते हैं कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है। चुनाव में अमेरिका के इस्राइल के साथ खड़े होने का फायदा मिलेगा। इसलिए अमेरिका लगातार इस्राइल के साथ खड़े होने का संदेश दे रहा है। वह भावी चुनौती को देखते हुए आक्रामक है। एनबी सिंह कहते हैं कि इन पेचीदगियों को ईरान भी समझ रहा है।
पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल बलविंदर सिंह संधू कहते हैं कि यह सब ईरान को पता है। अमेरिका को भी पता है कि आगे सैन्य कार्रवाई की प्रक्रिया चली, तो यूरोप पर शरणार्थियों का दबाव बढ़ेगा। यूरोप पहले से ही दबाव में है और परेशान है। दूसरे पश्चिम एशिया में शरणार्थियों की संख्या बढ़ेगी। अपराध भी बढ़ेंगे। युद्ध लंबा खिंचेगा तो अमेरिका के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि अमेरिका युद्ध को लंबा खींचने के पक्ष में होगा। युद्ध का लंबा खींचना मानवता के लिहाज से भी अच्छा नहीं है।
सबसे अधिक फायदा चीन को
विदेश मामलों के वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि ईरान और इस्राइल के बीच में तनाव बढ़ने से सबसे अधिक फायदा चीन को हो रहा है। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल बलविंदर सिंह कहते हैं कि चीन और रूस दो देश हैं, जिनसे ईरान सहयोग की उम्मीद कर सकता है, लेकिन रूस इस समय यूक्रेन में फंसा हुआ है। अमेरिकी कांग्रेस ने यूक्रेन की मदद के लिए वित्तीय मदद को मंजूरी नहीं दी है। इससे अमेरिकी रक्षा कंपनियों के हथियार, गोला बारुद यूक्रेन कम खरीद पा रहा है। रही बात चीन की, तो वह ईरान की खुलकर मदद करने के लिए आगे नहीं आएगा। इसलिए ईरान के सामने संकट और दुविधा दोनों की स्थिति अधिक है।
इस्राइल ने की जवाबी कार्रवाई तो आगे कैसे रहेगी दुनिया?
आर्थिक मामलों के जानकार एके सिंह कहते हैं कि इस्राइल को जवाबी कार्रवाई करने से रोकने की कोशिशों में अमेरिका समेत तमाम देश प्रयास कर रहे हैं। यह तो तय है कि इस्राइल अभी हमास और हूती विद्रोहियों पर कार्रवाई जारी रखेगा। हूती विद्रोही भी लाल सागर को अशांत बनाए रखेंगे। लेकिन इस्राइल ने जवाबी कार्रवाई की, तो ईरान को अपनी साख को ध्यान में रखकर जवाब देना पड़ेगा। अभी ईरान ने जो कार्रवाई की है, उसका अंदेशा था। अमेरिका को भी इल्म था। लेकिन आगे ऐसा हुआ तो लड़ाई लंबी चल सकती है। इससे विश्व की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हो सकता है। कच्चे तेल की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। तमाम विकासशील देशों को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यूरोप का संकट और अधिक बढ़ सकता है। रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत हो सकता है। इससे भारत के लिए निर्यात तो सुविधाजनक रहेगा, लेकिन आयात में अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी। एके सिंह कहते हैं कि इसे आप भारत जैसे देश के लिए अवसर भी मान सकते हैं। क्योंकि दुनिया के निवेशकों के लिए भारत एक सुरक्षित बाजार के साथ-साथ निवेश के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा। इससे अर्थव्यवस्था के छलांग लगाने की संभावना रहेगी।