नीरज कुमार/बेगूसराय. तमाम दावों के बावजूद आज भी बिहार के लोगों को उचित डॉक्टर की सलाह नहीं मिल पाती है. इस कारण से ज्यादातर मरीज गैर जरूरी दवाएं खासकर एंटीबायोटिक बिना मतलब के खा रहे हैं. यह दवा फायदा पहुंचाने के बदले मरीज को नुकसान ही पहुंचाती है. ग्रामीण क्षेत्र में ऐसा होते ज्यादा देखा जाता है. ऐसे में जब मरीज की स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है, तब परेशान होकर मरीज अच्छे डॉक्टर के पास जाते हैं. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. मामूली इलाज भी सर्जरी के स्टेज पर पहुंच जाता है.
बेगूसराय के मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. अनीश प्रकाश पिछले 15 वर्षों से रिसर्च पर काम कर रहे हैं. उन्होंने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि ज्यादा मात्रा में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल शरीर के इम्यून सिस्टम पर बुरा प्रभाव डाल रहा है. कई डॉक्टर जानकारी के अभाव में खूब एंटीबायोटिक सजेस्ट करते हैं. कुछ डॉक्टर तो एंटीबायोटिक को लेकर मेडिकल साइंस की बातों को भी नहीं मानते हैं. डॉ. अनीश बताते हैं कि मेडिकल साइंस कहता है कि इलाज से पहले मरीज की जांच होनी चाहिए. जांच रिपोर्ट के आधार पर देखना चाहिए कि कौन से एंटीबायोटिक की मरीज को जरूरत है, जो कि शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाएगी. उनकी मानें तो एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल की वजह से इन दिनों हर्ट और फेफड़ा आदि नाजुक अंगों पर असर पड़ने की वजह से लोगों की जान भी जा रही है.
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झोला छाप डॉक्टर की वजह से बढ़ रहा खतरा
बेगूसराय के एक निजी अस्पताल पहुंचे आंख के मरीज सुधीर कुमार ने लोकल 18 को बताया कि उन्होंने एक साल तक गांव के झोलाछाप डॉक्टर से इलाज करवाया था. वहां बीमारी ठीक होने के बजाए धीरे-धीरे आंख की रोशनी ही कम होती चली गई. अब पता चला कि काफी देर हो चुकी है. दवाई से ठीक नहीं हो सकता है. ग्रामीण स्तर पर ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
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FIRST PUBLISHED : April 20, 2024, 09:10 IST