महाराष्ट्र के पुणे में स्थित गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (जीआईपीई) में कुलपति की नियुक्ति को लेकर विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसी बीच एक पूर्व बोर्ड सदस्य और कुलपति पद के एक उम्मीदवार प्रोफेसर मनोज कर ने चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। साथ ही प्रोफ्रेसर कर ने जीआईपीई के चांसलर संजीव सान्याल और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को पत्र लिखकर मांग की है कि जब तक प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं आती, तब तक इसे स्थगित किया जाए।
मनोज कर ने चयन प्रक्रिया पर उठाए सवाल
एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए प्रोफेसर मनोज कर ने कहा कि चांसलर सान्याल को थोड़े समय के लिए निकालने के बाद, सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (एसआईएस) ने उन्हें फिर से बहाल कर दिया। इसके बाद जीआईपीई के अंतरिम कुलपति ने कहा कि उनका उद्देश्य अलग-अलग क्षेत्रों के बीच सहयोग बढ़ाना है।
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प्रोफेसर कर ने जोर दिया कि फिर से बहाल होने के बाद कुलपति पद के लिए विज्ञापन में अर्थशास्त्र, विकास अध्ययन, राजनीतिक अर्थव्यवस्था, नीति अध्ययन और सामाजिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों से आवेदन मांगे गए थे। प्रफेसर कर ने कहा कि कुलपति ने सिर्फ अर्थशास्त्र से जुड़े लोगों को ही शॉर्टलिस्ट किया। उन्होंने कहा कि मैं लोकनीति (Public Coverage) के क्षेत्र से हूं, लेकिन मेरा नाम इस लिस्ट में नहीं था।
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चयन प्रक्रिया पर उठाए सवाल
प्रो. मनोज कर ने सवाल उठाया कि संस्थान में अस्थिरता के बावजूद कुलपति का चयन इतनी जल्दी क्यों किया गया। उन्होंने एसआईएस के सचिव की गिरफ्तारी और जीआईपीई के बीच विवाद का भी जिक्र किया। साथ ही पारदर्शिता की कमी पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम और आवेदन करने वालों की संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने मांग की कि इस प्रक्रिया को तब तक रोका जाए जब तक पारदर्शिता से संबंधित समस्याएं हल नहीं हो जातीं।