Monday, July 14, 2025
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Censor Board Mumbai Workplace Refuses To Concern Censor Certificates To Bhojpuri Movie Jaya Caste Lady Empowerment – Leisure Information: Amar Ujala


इंजीनियर बनने के सपने को पीछे छोड़ भोजपुरी सिनेमा पर लगे अश्लीलता के दाग को छुटाने की कोशिश कर रहा एक युवा निर्देशक इन दिनों सेंसर बोर्ड के मुंबई कार्यालय के चक्कर काट रहा है। सामाजिक समरसता और महिला सशक्तिकरण पर बनी उसकी फिल्म ‘जया’ को सेंसर बोर्ड ने सिर्फ इसलिए सेंसर सर्टिफिकेट देने से इन्कार कर दिया है कि फिल्म की नायिका फिल्म के क्लामेक्स में अकेले रहने का फैसला कर लेती है। सेंसर बोर्ड की परीक्षण समिति (एग्जामिनिंग कमेटी) के सदस्य अब भी यही मानते हैं कि बिहार या पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिना पति के सहारे किसी महिला का समाज में रहना ठीक नहीं है!




केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सेंसर बोर्ड के मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारी इन दिनों अपने फैसलों को लेकर सुर्खियों में हैं। हिंदी सिनेमा के दिग्गज फिल्म निर्माता-निर्देशक के सी बोकाडिया अपनी फिल्म ‘तीसरी बेगम’ से जय श्री राम हटाने के सेंसर बोर्ड के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख कर चुके हैं, उनकी फिल्म तो फिर भी पुनरीक्षण समिति ने देख ली थी, भोजपुरी फिल्म ‘जया’ का अभी नंबर ही नहीं आया है। सेंसर बोर्ड के दफ्तर से यही जवाब मिल रहा है कि समिति के सदस्य ही इकट्ठे नहीं हो पा रहे हैं इस काम के लिए। 


भोजपुरी सिनेमा के दिग्गज निर्माता रत्नाकर प्रसाद की फिल्म ‘जया’ के निर्देशक वही धीरू यादव हैं जिन्होंने भोजपुरी सिनेमा में साफ सुधरी फिल्में बनाने का इन दिनों बीड़ा उठा रखा है। ‘अमर उजाला’ से एक मुलाकात में वह बताते हैं, ‘मेरी तो एनआईटी में बढ़िया रैंकिंग आई थी। घरवाले चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं। कोटा में चार साल रहकर मैंने मेहनत की थी और तब प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ था लेकिन मेरा मन कुछ ऐसा करने को हो रहा था जिससे सामाजिक बदलाव हो सके। मैंने मुंबई आकर अलग अलग निर्देशकों का सहायक बनकर काम सीखा और फिर अपनी फिल्में बनानी शुरू कर दीं।’


बिहार में बाढ़ की समस्या पर बनी उनकी फिल्म ‘कटान’ साल के शुरुआत में आए ट्रेलर के बाद से ही चर्चा में रही। फिल्म ‘जया’ को भी इसी साल के शुरू में रिलीज होना था लेकिन जनवरी में सेंसर बोर्ड में जमा हुई फिल्म ‘जया’ को परीक्षण समिति ने ये कहते हुए सेंसर सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया कि इसमें महिला किरदार को सामाजिक रूप से काफी दबा हुआ दिखाया गया है। धीरू कहते हैं, ‘मुझे तो लगता है इन लोगों ने फिल्म देखी ही नहीं या फिर इन्हें भारत में हो रहे बदलावों की समझ नहीं है। मेरी फिल्म एक सत्य घटना से प्रेरित है।’


कोरोना के समय मध्य प्रदेश में श्मशान घाट पर काम करने वाली एक महिला की खबर से प्रेरित फिल्म ‘जया’ की कहानी कुछ यूं है कि घर परिवार से दुत्कारी गई एक बेटी श्मशान घाट पर लोगों की चिताएं जलाने में मदद करने का काम करती है। वह अपने बेटे का भी यहीं अंतिम संस्कार खुद ही कर चुकी है। फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है और अंत में फिल्म का ब्राह्मण नायक उसे लेने भी आता है लेकिन यह बेटी अपने आत्मसम्मान पर आंच नहीं आने देना चाहती। एक डोम की बेटी को पहले एक अमीर परिवार दुत्कारता है, लेकिन फिल्म के क्लाइमेक्स में यही डोम की बेटी सामाजिक स्वीकार्यता मिलने की पहल को ठुकरा कर अपना जीवन अपने बूते व्यतीत करने का फैसला करती है। 

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