
लोकसभा चुनाव की सियासत
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लोकसभा चुनाव का पहला चरण शुकवार से शुरू हो गया। पहले चरण में जहां भाजपा को न सिर्फ पिछले चुनाव में जीते गए गढ़ बचाने हैं, बल्कि अपने टारगेट को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें भी जीतनी हैं। वहीं पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जितनी सीटों पर चुनाव लड़ा था, इस बार उससे कम सीटों पर सियासी मैदान में है। बावजूद इसके गठबंधन अपनी अग्नि परीक्षा और तमाम चुनौतियों के साथ 102 सीटों पर सियासी ताल ठोक रहा है। वहीं पहले चरण में सिर्फ बसपा ही एक ऐसी पार्टी है जो सबसे ज्यादा 86 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि इस बार पिछले चुनावों की तुलना में कई राजनीतिक समीकरण बदले हैं।
पहले चरण में भाजपा ने जीती थीं सबसे ज्यादा सीटें
सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव का पहले चरण का मतदान शुक्रवार सुबह शुरू हो चुका है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में इन्हीं 102 सीटों पर हुए मतदान में सबसे ज्यादा सीटें भाजपा ने जीती थीं। पिछले चुनाव में भाजपा ने इन 102 सीटों में से 60 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इन 60 सीटों में से 40 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी। जबकि गठबंधन के हिस्से कुछ अन्य सीटें भी एनडीए को मिली थीं। इस चुनाव में भाजपा पिछले चुनाव की तुलना में 17 सीटें ज्यादा लड़ रही है। इस बार भाजपा ने इन 102 सीटों में से 77 सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक कर प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं।
भाजपा ने पिछले चुनाव में उत्तराखंड की सभी पांचों सीटें अपने खाते में डालकर जीत दर्ज की थी। राजनीतिक विश्लेषक वीपी नौटियाल कहते हैं कि उत्तराखंड में इस बार भाजपा को सभी पांचों सीटों को दोबारा जीतने की चुनौती है। क्योंकि यह वह राज्य है, जहां भाजपा ने पिछले चुनाव में 100 फीसदी सीटें जीतकर अपने खाते में डाली थीं। यही वजह है कि इस बार भाजपा से वही परिणाम और अपेक्षा दोनों की जा रही हैं। इसके अलावा राजस्थान के जिन 12 लोकसभा सीटों पर शुक्रवार को मतदान हो रहा है। उसमें से 11 सीटें 2019 के चुनाव में भाजपा ने जीती थीं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अरुण शर्मा कहते हैं कि पहले चरण में राजस्थान की इन जीती हुई सीटों को बचाकर रखना भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
कम नहीं हैं भाजपा के लिए चुनौतियां
अरुण शर्मा का कहना है कि भाजपा अगर 400 सीटों को जीतने का दावा कर रही है, तो उसे न सिर्फ अपनी सभी जीती हुईं सीटें दोबारा जीतनी होंगी, बल्कि अन्य सीटों पर भी कब्जा जमाना होगा। यही वजह है कि भाजपा के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं। वह कहते हैं कि इन राज्यों के अलावा अरुणाचल प्रदेश में हो रहे मतदान में भी भाजपा को अपनी दोनों जीती हुई सीटों को दोबारा जीतने की चुनौती बनी हुई है। सियासी जानकारों का कहना है कि पूर्वोत्तर में शुक्रवार को हो रहे मतदान में भाजपा के सामने अपनी सभी जीती हुईं सीटों को वापस पाने की लड़ाई है। पहले चरण के 102 सीटों पर हुए पिछले चुनाव के मतदान में भाजपा ने 60 सीटों में से 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसलिए उसके सामने अपना प्रतिशत बढ़ाने की चुनौती है।
सिर्फ उत्तराखंड, राजस्थान, अरुणाचल और पूर्वोत्तर के राज्य ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में भी पहले चरण की 8 सीटों पर भाजपा को अपनी सीटें बढ़ाने का दबाव है। वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि जिन आठ सीटों पर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश में मतदान हो रहा है, उनमें पांच सीटें तो पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा हार चुकी थी। हालांकि उनका कहना है कि पिछले चुनाव के जो सियासी समीकरण थे, उसमें सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल का आपस में एक बड़ा गठबंधन था। इस गठबंधन के बावजूद भाजपा ने तीन सीटों पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन आठ सीटों में जीत दर्ज की थी। शुक्ला कहते हैं कि इस बार गठबंधन के लिहाज से तस्वीर बदली हुई दिख रही है। पिछले चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल जहां सपा-बसपा के साथ थी, वहीं इस बार वह भाजपा के साथ में है। सपा और बसपा का गठबंधन भी टूट चुका है। उनका कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार आठों लोकसभा सीटों पर अलग-अलग सीयासी समीकरणों से मजबूत लड़ाई दिख रही है।
महाराष्ट्र में इस बार बदले हुए हैं समीकरण
मध्यप्रदेश में भी शुक्रवार को पहले चरण की छह सीटों पर मतदान होना है। इन छह सीटों में से सिर्फ छिंदवाड़ा की सीट छोड़ दी जाए, तो पांच सीटों पर भाजपा ने 2019 में लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अमित कुमार कहते हैं कि लेकिन इस चुनाव में जिस तरीके से कमलनाथ के साथ जुटे रहे लोगों ने पाला बदला है, उससे भाजपा मजबूती का दावा लगातार कर रही है। इसी तरह महाराष्ट्र में जिन पांच सीटों पर शुक्रवार को मतदान हो रहा है, उनमें से चार सीटें भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में जीती थीं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु शितोले कहते हैं कि लेकिन इन पांच सालों में सियासी समीकरण बदल चुके हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने जिसके साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, इस बार वह पाला बदलकर अलग-अलग हिस्सों में चले गए हैं। हिमांशु का कहना है कि भाजपा के लिए चुनौती इसलिए ज्यादा मानी जा रही है, क्योंकि उसे न सिर्फ अपनी सीटें जीतनी हैं, बल्कि गठबंधन के साथ मजबूत लड़ाई भी लड़नी है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण में 102 सीटों पर होने वाले मतदान में 1625 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इसमें 134 महिलाएं और 1491 पुरुष अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 102 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी एक ऐसी पार्टी है, जो 86 प्रत्याशियों के साथ अकेले सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी 77 सीटों के साथ सियासी मैदान में है। इसी तरह कांग्रेस 56 सीटों पर सियासी मैदान में है। जबकि एडीएमके 36 सीटों पर और डीएमके 22 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पांच सीटों पर टीएमसी, चार सीटों पर राजद और सात सीटों पर समाजवादी पार्टी और एक सीट पर आरएलडी चुनावी मैदान में है।