अपनी लाचारी को बनाया अपना जिद
रमेश यादव वर्ष 2022 में भोजपुर के उत्क्रमित मध्य विद्यालय अलेखिटोला, बड़हरा में बतौर शारीरिक शिक्षक बहाल हुए. खुद गरीब परिवार से आने वाले रमेश बताते हैं कि जब मैं बॉक्सर बनना चाहता था, तो कोच ने पैसे और ग्लव्स की मांग की थी, मैं नहीं दे सका, और मेरा सपना वहीं खत्म हो गया. उसी समय मैंने ठान लिया था कि किसी बच्चे से कभी पैसे नहीं मांगूंगा. आज रमेश यादव का वही अधूरा सपना उनके 19 शिष्यों के गले में लटकते मेडल के रूप में पूरा हो रहा है. इनमें कई बेटियां भी शामिल हैं, जो अब आत्मविश्वास के साथ रिंग में उतरती हैं और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में पदक जीत रही हैं.
बच्चों के लिए किट, जूते, ग्लव्स और हेलमेट जैसी मूलभूत चीजें भी नहीं थीं. लेकिन रमेश यादव ने हार नहीं मानी. अपनी 8000 रुपये की सैलरी में से कुछ हिस्सा निकालकर इन जरूरतों को पूरा किया. उनके इसी प्रयास से बच्चों में आत्मविश्वास आया और अब ये युवा खिलाड़ी दिन-रात मेहनत कर बिहार का नाम रोशन कर रहे हैं. एक बॉक्सिंग खिलाड़ी बताती हैं ‘पहले बहुत डर लगता था, चोट भी लगती थी. लेकिन अब सर ने किट और सुरक्षा के सारे सामान दे दिए. अब हम पूरे जोश से प्रैक्टिस करते हैं और जीतने का सपना देखते हैं.’
रमेश के प्रयासों को मिली पहचान
रमेश यादव की मेहनत को आखिरकार सरकार ने भी पहचाना. बिहार सरकार के खेल निदेशक रविंद्र शंकरण ने खुद इस जमीनी कोच के प्रयासों को सराहा और उन्हें हर संभव मदद देने की घोषणा की. राज्य सरकार के सहयोग से अब रमेश यादव के खिलाड़ियों को संसाधन मिलने लगे हैं और रिंग में बिहार की मुक्केबाज़ी चमकने लगी है.
बड़हरा की जिस जमीन पर अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह पैदा हुए थे, आज उसी गांव के बेटे और बेटियां खेल के मैदान में अपना दम दिखाने को तैयार हो रहे हैं. रमेश यादव की बॉक्सिंग क्रांति ने साबित कर दिया है कि अगर नीयत साफ हो और मेहनत सच्ची, तो संसाधनों की कमी भी बाधा नहीं बनती.
आने वाले दिनों में ओलंपिक की तैयारी
रमेश यादव कहते हैं मेरा सपना है कि भोजपुर की मिट्टी से ओलंपिक में सोना बरसे. मैं तब तक नहीं रुकूंगा जब तक मेरा कोई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए मेडल नहीं जीतता. उनका सपना सिर्फ उनका नहीं, अब पूरे भोजपुर और बिहार का सपना बन गया है.