पंकज सिंगटा/शिमला. प्री मैच्योर बच्चे यानी गर्भावस्था के 9 महीने पूरे होने से पहले पैदा हुए बच्चों को कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है. दरअसल, मां के गर्भ में पूरे नौ महीनों के दौरान ही बच्चे के ऑर्गन विकसित होते हैं. लेकिन समय से पहले पैदा होने के कारण कई अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते. वहीं ऐसे नवजातों को वेंटीलेटर पर रखने की परिस्थिति भी आ सकती है. ऐसे में बच्चों में आंख के परदे नहीं बन पाते, जिससे उनका समय पर इलाज जरूरी होता है. ऐसा न करने पर आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है.
आईजीएमसी शिमला एसोसिएट प्रोफेसर कार्यरत डॉ. प्रवीन पंवर ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि प्री मैच्योर बेबी में आंखों की बीमारी होती है, इसे रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योर बेबी कहा जाता है. मां के गर्भ में बच्चे का सामान्य समय 9 महीने होता है. कभी-कभी कुछ बीमारियों के कारण बच्चे का जन्म 9 महीनों से पहले हो जाता है. इस कारण बच्चों में कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं. रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योर बेबी ऐसी ही एक बीमारी है.
क्या होती है रेटीना डिटैचमेंट
प्री मैच्योर बच्चों में यदि समय रहते आंख के परदे का इलाज नहीं किया गया, तो धीरे-धीरे उनकी आंख का परदा उखड़ना शुरू हो जाता है. इसे रेटीना डिटैचमेंट कहा जाता है. ऐसे बच्चों की आंख का इलाज नहीं किया गया, तो वह उम्र भर के लिए आंखों की रोशनी खो सकता है. ऐसी स्थिति को टोटल रेटीना डिटैचमेंट कहा जाता है. इसका कोई इलाज नहीं है. सर्जरी से भी यह इलाज संभव नहीं. इसलिए जन्म के 30 दिनों के भीतर प्री मैच्योर बच्चों की आंखों का चेकअप बहुत जरूरी है.
कैसे किया जाता है प्री मैच्योर बच्चों का इलाज
प्री मैच्योर बच्चे की आंखों का परदा यदि पूरा नहीं बना है, तो डॉक्टर इसके इलाज के लिए पहले बीमारी की स्टेजिंग करते हैं. यदि बीमारी अर्ली स्टेज की है, तो एक या दो हफ्तों में बच्चे का फॉलोअप लिया जाता है. 30 दिनों के भीतर बच्चे में बीमारी पाई जाती है तो, इस स्थिति में लेजर करना होता है. लेजर करने से बच्चे की आंख का पहले से बना हुआ परदा बचाया जा सकता है और उसे रेटीना डिटैचमेंट से बचाया जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED : Could 10, 2024, 14:40 IST