बुधवार 9 जुलाई को राजधानी पटना में महागठबंधन की ओर से बुलाए गए बिहार बंद के दौरान एक घटना ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव एक खुले वाहन पर सवार होकर कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे. इस रथ पर महागठबंधन के अन्य प्रमुख नेता जैसे दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले) और मुकेश सहनी (वीआईपी पार्टी) मौजूद थे. लेकिन इस दौरान कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को वाहन पर चढ़ने से रोक दिया गया. यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और महागठबंधन की एकता पर सवाल उठाने लगी. क्या यह घटना
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन की आंतरिक खींचतान को उजागर करती है और क्या इस तरह महागठबंधन बिहार में सत्ता हासिल कर पाएगा?
बिहार बंद का आयोजन मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के विरोध में किया गया था. राहुल गांधी ने इस दौरान आरोप लगाया कि चुनाव आयोग संविधान की रक्षा करने के बजाय बीजेपी के लिए काम कर रहा है, जबकि
तेजस्वी यादव ने इसे मोदी-नीतीश की दादागिरी करार दिया. इस प्रदर्शन का उद्देश्य विपक्षी एकता का प्रदर्शन करना था, लेकिन कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को रथ पर जगह न मिलने ने गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिए. वायरल वीडियो में कन्हैया को रथ से उतरते और पप्पू यादव को सुरक्षाकर्मियों द्वारा रोके जाते देखा जा सकता है. इसने सियासी विश्लेषकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या यह तेजस्वी यादव की रणनीति थी.
कन्हैया और पप्पू यादव की हैसियत
कन्हैया कुमार जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं.
बिहार में कांग्रेस के युवा चेहरे के रूप में उभरे हैं. उनकी नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा ने युवाओं और बेरोजगारों के बीच खासी लोकप्रियता हासिल की थी. दूसरी ओर पप्पू यादव कोसी-सीमांचल क्षेत्र में अपने सामाजिक आधार के लिए जाने जाते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पूर्णिया से निर्दलीय जीत हासिल की. उन्होंने राजद की उम्मीदवार बीमा भारती को हराया. दोनों नेताओं की बढ़ती सक्रियता RJD और विशेष रूप से तेजस्वी यादव के लिए असहजता का कारण बन रही है. जानकारों का कहना है कि तेजस्वी को कन्हैया और पप्पू की लोकप्रियता से खतरा महसूस हो रहा है, खासकर तब जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है.
तेजस्वी की रणनीति
सियासी हलकों में चर्चा है कि
तेजस्वी यादव ने इस घटना के जरिए अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की. राजद का एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण उसकी सबसे बड़ी ताकत है और तेजस्वी नहीं चाहते कि कन्हैया या पप्पू यादव की लोकप्रियता इस समीकरण को कमजोर करे. पप्पू यादव ने हाल ही में दावा किया कि अगर 2024 में तेजस्वी ने उनका साथ दिया होता तो इंडिया गठबंधन मजबूत होता और शायद राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन सकते थे. यह बयान तेजस्वी और पप्पू के बीच पुरानी अदावत को और उजागर करता है.
कांग्रेस के लिए यह स्थिति और जटिल है. पार्टी बिहार में अपनी पहचान मजबूत करने की कोशिश कर रही है और कन्हैया को इसके लिए एक बड़ा चेहरा माना जा रहा है. लेकिन तेजस्वी की अगुवाई में राजद का दबदबा कांग्रेस को सीमित कर रहा है. सूत्रों का कहना है कि राजद ने कांग्रेस को साफ संदेश दिया है कि अगर कन्हैया को ज्यादा बढ़ावा दिया गया तो गठबंधन में सीट बंटवारे पर फिर से विचार हो सकता है. सोशल मीडिया पर इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया आई है. कुछ यूजर्स ने इसे तेजस्वी की तानाशाही करार दिया, तो कुछ ने कांग्रेस पर परिवारवाद और फोटो-ऑप की राजनीति का आरोप लगाया. एक पोस्ट में कहा गया कि तेजस्वी ने राहुल के सामने अपनी ताकत दिखाई, जिससे गठबंधन की एकता पर सवाल उठ रहे हैं.
यह घटना महागठबंधन के लिए एक चेतावनी है. अगर गठबंधन के भीतर ऐसी खींचतान जारी रही, तो 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को फायदा हो सकता है. तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने की चर्चा चल रही है, लेकिन कांग्रेस के भीतर इस पर सहमति नहीं है. कन्हैया और पप्पू जैसे नेताओं को किनारे करना गठबंधन की एकता को कमजोर कर सकता है.