नई दिल्ली. 1914 में शुरू हुई मोटर कंपनी निसान और 1948 में बनी कंपनी होंडा ने एक ऐसा फैसला लिया है, जो पूरी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की शक्ल बदल सकता है. ये दोनों ही जापानी कंपनियां हैं और फिलहाल दोनों अलग-अलग तरह की परेशानियों से जूझ रही हैं. इन परेशानियों से पार पाने के लिए दोनों कंपनियां एक हो जाना चाहती हैं. इन दोनों कंपनियों के विलय की खबरें दो दिन से चल रही हैं. ऐसे में कार चलाने वालों के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर इतनी बड़ी दो कंपनियां विलय क्यों कर रही हैं? हम हम आपको इसी बारे में जानकारी दे रहे हैं.
होंडा और निसान ने 2025 तक एक बड़े विलय की घोषणा की है. दोनों एक कॉमन होल्डिंग कंपनी बनाने की दिशा में बढ़ रही हैं. माना जा रहा है कि 2026 में यह कंपनी शेयर बाजारों में लिस्ट होगी. यदि यह विलय सफलतापूर्वक होता है तो ये दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी बन जाएगी. इसके ऊपर केवल टोयोटा और फोक्सवैगन का नाम रहेगा. इसके अलावा प्रोडक्शन की बढ़ती लागत और चीन की कंपनियों से मिल रहा कड़ा कंपीटिशन इस विलय की बड़ी वजह हैं.
चीनी कंपनियों का दबदबा
चीन में बनने वाली इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों की लोकप्रियता के चलते जापानी कंपनियों की कारों का क्रेज दुनियाभर में कम हुआ है. चीनी कंपनियां जैसे कि BYD, Xpeng, और Nio की गाड़ियां काफी पॉपुलर हो रही हैं. निसान और होंडा दोनों चीन के बाजार में अपनी हिस्सेदारी लगाता गंवा रहे हैं. ऐसे में कुछ दिनों से खबरें आ रही हैं कि दोनों ही अपनी उत्पादन क्षमता घटाने पर विचार कर रही हैं, ताकि लागत को भी घटाया जा सके.
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सुनने में आ रहा है कि दोनों ब्रांड बने रहेंगे, मगर कंपनी एक हो जाएगी. ऐसे में फायदा ये होगा कि प्लेटफॉर्म और टेक्नोलॉजी शेयर कर सकेंगे. रिसर्च और डेवलपमेंट में क्षमता बढ़ेगी तो लागत भी कम होगी.
निसान इस समय गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रही है. कंपनी ने हाल ही में 9,000 नौकरियां (6 फीसदी ग्लोबल वर्कफोर्स) घटाने की घोषणा की थी. पिछले महीने कंपनी ने 9.3 अरब येन (लगभग 450 करोड़ रुपये) का घाटा दर्ज किया. होंडा के साथ यह विलय निसान को स्थिरता दे सकता है. ऐसा नहीं है कि केवल निसान को ही फायदा होगा. इसका लाभ होंडा को भी मिलेगा. दरअसल, निसान यूरोपीय मार्केट में मजबूत पकड़ रखती है, जबकि होंडा की उपस्थिति वहां नहीं है. निसान के पास बॉडी-ऑन-फ्रेम टेक्नोलॉजी है, और होंडा पेट्रोल इंजन में माहिर है. इसी तरह, निसान के पास EV (इलेक्ट्रिक वाहन) का लंबा अनुभव है, जबकि होंडा इस क्षेत्र में नया है.
किसके हाथ में रहेगा कंट्रोल?
इस विलय के बाद मुख्य कंट्रोल होंडा के हाथ में रहेगा. वही होल्डिंग कंपनी के अध्यक्ष का चयन करेगी. सूचना ऐसी भी है कि इसमें मित्सुबिशी मोटर्स को भी शामिल किया जा सकता है, क्योंकि निसान की उसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी है. होंडा के CEO मिबे तोशिहिरो ने कहा कि यह विलय ग्लोबल स्तर पर हो रहे बदलावों के मद्देनजर हो रहा है.
भारत में होंडा और निसान ने कुछ हद तक सफलता तो पाई है, लेकिन उसे स्तर को बनाए रखने में काफी संघर्ष भी करना पड़ा है. होंडा की सिटी सेडान ने भारत में अच्छी जगह बनाई, लेकिन बाकी सेगमेंट में कंपनी पिछड़ गई. निसान के पास भारतीय बाजार में खास पहचान नहीं है, लेकिन अभी मैग्नाइट ने ठीक-ठाक सेल दर्ज की है. यदि यह विलय होता है तो दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन होगी.
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FIRST PUBLISHED : December 24, 2024, 13:18 IST