Final Up to date:
Rohtas Biomass Pellets and Briquettes Manufacturing: सासाराम के रहने वाले दिनेश कुमार परली को ही कमाई का जरिया बना लिया. पराली सहित फसल के अन्य वेस्ट मेटेरियल से बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स बना रहे हैं. ब्रिके…और पढ़ें

Pratikatmak tasvir
हाइलाइट्स
- दिनेश कुमार पराली से बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स बना रहे हैं.
- “मां दुर्गा बायोफ्यूल” प्लांट से दिनेश को 20 लाख सालाना मुनाफा हो रहा है.
- बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स पर्यावरण-अनुकूल ईंधन विकल्प हैं.
रोहतास. क्या आपने कभी सोचा है कि खेतों में बची पराली सिर्फ कचरा नहीं, बल्कि कमाई का जरिया भी बन सकती है? बिहार के सासाराम में दिनेश कुमार ने इस सोच को हकीकत में बदलते हुए “मां दुर्गा बायोफ्यूल” नाम से एक अनोखी पहल शुरू की है. यह प्लांट फसल अवशेषों से बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स बनाकर किसानों को अतिरिक्त आय का मौका दे रहा है. साथ ही, यह पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
हर साल पराली जलाने से पर्यावरण में भारी प्रदूषण फैलता है, जिससे हवा जहरीली हो जाती है. लेकिन “मां दुर्गा बायोफ्यूल” किसानों को पराली बेचने का विकल्प देकर इस समस्या का समाधान लेकर आया है. यदि कोई किसान पुआल को सीधे प्लांट तक पहुंचाता है, तो उसे 2.50 रुपये प्रति किलो की दर से भुगतान किया जाता है. वहीं, अगर पुआल को कुट्टी (छोटे टुकड़ों) में बदलकर लाया जाता है, तो इसकी कीमत 3.50 रुपये प्रति किलो मिलती है.
दिनेश बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स करते हैं तैयार
दिनेश कुमार बताते हैं कि उनके प्लांट में मुख्य रूप से बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स बनाए जाते हैं, जो कोयले और लकड़ी के पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है. पेलेट्स छोटे, बेलनाकार ईंधन कण होते हैं, जिन्हें लकड़ी के बुरादे, धान की भूसी, सरसों की भूसी और अन्य कृषि अपशिष्टों को उच्च दबाव में संकुचित करके तैयार किया जाता है. यह हल्के होते हैं और छोटे पैमाने के उपयोग, जैसे घरेलू चूल्हों और छोटे बॉयलरों में जलाने के लिए आदर्श है. वहीं ब्रिकेट्स बड़े और ठोस होते हैं, जो विशेष रूप से बॉयलरों, औद्योगिक भट्टियों और थर्मल पावर प्लांट्स में इस्तेमाल किए जाते हैं. इन्हें बनाने के लिए कृषि अवशेषों को उच्च तापमान और दबाव में संकुचित किया जाता है, जिससे उनमें मौजूद लिग्निन नामक प्राकृतिक गोंद सक्रिय हो जाता है.
20 लाख तक हर माह कर रहे कमाई
यह बिना किसी बाहरी केमिकल के खुद ही आपस में चिपक जाते हैं. इससे इनकी ऊर्जा घनत्व (Power Density) बढ़ जाती है, जिससे यह अधिक देर तक जलते हैं और ज्यादा गर्मी उत्पन्न करते हैं. दिनेश कुमार बताते हैं कि 1 किलो एलपीजी गैस जितनी ऊर्जा उत्पन्न करता है, उतनी ही ऊर्जा 1 किलो बायोमास पेलेट्स से प्राप्त की जा सकती है. यही कारण है कि अब बॉयलरों के अलावा छोटी भट्टियों में भी बायोमास पैकेट्स का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. वर्तमान में “मा दुर्गा बायोफ्यूल” में तीन बड़े प्लांट स्थापित किए गए हैं, जो रोजाना 120 टन बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स का उत्पादन कर रहे हैं. सरकार के समर्थन और बढ़ती मांग को देखते हुए, अब हर दिन 4-5 ट्रक ब्रिकेट्स की सप्लाई की जा रही है, जिससे दिनेश कुमार को मासिक 15-20 लाख रुपये तक का मुनाफा हो रहा है.
March 14, 2025, 12:18 IST