शिमलाः शिमला ऐतिहासिक शहर है. यहां का इतिहास इमारतों में तो दिखता ही है, लेकिन यह यहां के खान पान और महक में भी देखा जा सकता है. 100 वर्ष पुराने जायके को आज भी लोअर बाजार में मौजूद ठाकुर भ्राता की दुकान पर चखा जा सकता है. यहां का आचार और मुरब्बा काफी मशहूर है. साथ ही इसको रखने का तरीका भी काफी खास है. 3 मई 1925 को शुरू हुई यह दुकान अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है. मौजूदा समय में इस दुकान को 2 भाई विजय कुमार और राजिंदर कुमार चलाते है. इस दुकान को पिता ठाकुर चंद और चाचा पृथ्वी चंद ने शुरू किया था.
शुद्धता और स्वाद के लिए है मशहूर
लोकल 18 से बातचीत में विजय कुमार ने बताया कि उनकी दुकान 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है. उनके पिता द्वारा दूकान को 3 मई 1925 को शुरू किया गया था. यह दूकान विभिन्न प्रकार के अचार और मुरब्बे के लिए मशूहर है. इसके अलावा उनके द्वारा 1928 से आयुर्वेदिक दवाइयाँ भी बेची जाती है. यह दुकान अपनी शुद्धता और स्वाद के लिए मशूहर है.
25 प्रकार का अचार और 12 प्रकार का मिलता है मुरब्बा
86 वर्षीय विजय कुमार ने बताया कि पुराने समय से अभी तक बहुत कुछ बदला है. लोग अब ऐसी ऐसी चीजों का सेवन करते है, जिनके बारे में उन्होंने सुना भी नहीं है. ठाकुर भ्राता की दूकान पर करीब 25 से 26 प्रकार के अचार और 10 से 12 प्रकार के मुरब्बे बनाये जाते है. यह दुकान 1925 में ठाकुर चंद द्वारा 350 रुपए के साथ शुरू की गयी थी. उन्होंने दुकान शुरू करने के लिए 500 रुपए का अतिरिक्त कर्ज भी लिया था. दुकान चलने के बाद उन्होंने 2 वर्षों के बाद अपने भाई पृथ्वी चंद को भी अपने साथ शामिल कर लिया. शुरुआत में दुकान का नाम ठाकुर ब्रदर्स रखा गया था. देश की आज़ादी के बाद दुकान का नाम बदल कर ठाकुर भ्राता कर दिया गया. मौजूदा समय में विजय कुमार अपने भाई राजेंदर कुमार के साथ अपने पिता की विरासत को आगे लेकर जा रहे है.
अचार रखने के बक्सों का अपना इतिहास
ठाकुर भ्राता अपने अचार और मुरब्बे के लिए बहुत मशूहर है. दुकान पर जिन डब्बों में अचार रखा जाता है, उसका भी अपना इतिहास है. दरअसल, इन डब्बों में ब्रिटिश काल में बैटरियां आया करती थी. शिमला में 1912 में लाइट की सुविधा पहुंची थी. इससे पहले शिमला में रहने वाले कप्तान रैंक के अधिकारीयों के घरों पर लाइट के लिए बैटरियों का इस्तेमाल किया जाता था. चाबा पावर प्रोजेक्ट की शुरुआत के बाद शिमला में बिजली पहुंची और बैटरियों को दरकिनार कर दिया गया. ठाकुर चंद द्वारा इन बक्सों को कबाड़ी से बहुत कम कीमत पर ख़रीदा गया था. इसके बाद इन बक्सों का इस्तेमाल अचार रखने के लिए किया जाने लगा. यह कांच के बक्से करीब 150 वर्ष पुराने है और आज भी ज्यों के त्यों है.
तख्ती पर लिखा जाता है हिसाब-किताब
आज दुनिया डिजिटल वर्ल्ड की ओर आगे बढ़ रही है. जहाँ लोग कंप्यूटर के माध्यम से अपने किसी भी व्यवसाय का हिसाब किताब रखते हैं, वहीं आज भी यहां तख्ती पर हिसाब किताब लिखा जाता है. यह तख्ती 1925 में ठाकुर चंद द्वारा खरीदी गयी थी. जिस पर आज तक 50 से 60 रुपए का खर्च भी नहीं आया है. तख्ती पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाया जाता है. इस पर पैन से लिखा जाता है. तख्ती के पूरा भरने के बाद इसपर मुल्तानी मिटी का लेप लगाया जाता है. फिर से इसे इस्तेमाल किया जाता है. तख्ती का इस्तेमाल कर ठाकुर भ्राता द्वारा हज़ारों रुपए के कागज को बचाया गया है. हालांकि यहां भी अन्य दुकानों की तरह बहीखाता रखने के लिए लेजर बुक का ही इस्तेमाल ही किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : Might 5, 2024, 18:52 IST