Monday, June 23, 2025
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महाराजा जयसिंह: अलवर के राजा की रंगीन पार्टियों और विवादित जीवन.


अलवर में एक राजा हुए जिनका नाम था जयसिंह. अगर उनका पूरा लिखा जाने वाला नाम सुनेंगे तो चकरा ही जाएंगे. ये था – माननीय कर्नल. एचएच राज राजेश्वर भारत धर्म प्रभाकर महाराजा श्री सवाई सर जय सिंहजी वीरेंद्र शिरोमणि देव बहादुर जीसीएसआई जीसीआईई. बाप रे बाप इतना लंबा नाम. वह ऊंचे और बड़े पवित्र राजवंश में पैदा हुए. ये वही महाराजा थे, जिन्होंने 06 रोल्स रॉयस कारें खरीदीं. उन्हें कूड़ागाड़ी में बदल दिया. इन महाराजा को औरतों की शोहबत अच्छी नहीं लगती थी. हालांकि उनकी आलीशान पार्टियों में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं ही होती थीं. ये पार्टियां बहुत चर्चित थीं.

दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब “महाराजा” ( Maharaja by Jarmani Dass Diwan ) में इस बारे में विस्तार से लिखा है. महाराजा की उन पार्टियों का जिक्र किया है, जिसमें खूब रंगरेलियां होती हैं. जय सिंह ने मई 1933 तक 29 वर्षों से अधिक समय तक शासन किया. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें निर्वासन के लिए मजबूर कर दिया. वह भारत और यूरोप में कई अन्य स्थानों पर रहे. 1937 में 55 वर्ष की आयु के आसपास पेरिस में उनकी मृत्यु हो गई.

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राजा बहुत फिजूलखर्च थे

उसकी फिजूलखर्ची के कारण राज्य भारी कर्जदार हो गया. ऋण चुकाने के लिए उन्हें किसानों पर अनुचित रूप से भारी कर लगाना पड़ा. इसके कारण समय-समय पर कृषि विद्रोह होते रहे.

भगवान राम जैसी वेशभूषा अपना ली थी

हजारों साल पहले भगवान रामचंद्र की जो वेषभूषा थी, वही महाराज ने भी अपना ली. महाराजा को औरतों से बिल्कुल लगाव नहीं था. हालांकि उनकी चार शादियां हुईं थीं. दीवान जरमनी दास ने लिखा, महाराजा को मर्दों की शोहबत ज्यादा पसंद थी. अपने मंत्रियों, प्राइवेट सेक्रेट्री और सहायकों का चुनाव वह बहुत सावधानी से करते थे. उनके दरबार में कई नामवर अफसर थे, जो आजादी के बाद और बड़े पदों पर आसीन हुए.

महाराजा जयसिंह अलवर के इसी महल में देते थे शानदार चर्चित पार्टियां. हालांकि अपनी फिजूलखर्ची से उन्होंने राज्य के खजाने को खाली कर दिया था. (विकी कामंस)

महल की पार्टियों में होती थीं रंगरेलियां

महाराजा को बेशक औरतों की शोहबत ज्यादा पसंद नहीं थी लेकिन वो महल में अक्सर जश्न करते थे. इसमें काफी रंगरेलियां मनाई जाती थीं. इसमें उनकी महारानियां, चहेतियां, उनके खास मंत्री लोग और निजी अफसरान उनकी बीवियां और बेटियां शरीक हुआ करते थे. इन पार्टियों की आड़ में काफी मस्ती होती थी. मौका मिलने पर औरतें और मर्द दूसरों के साथ लुत्फ उठाने से नहीं चूकते थे. कहते हैं ये पार्टियां स्वैपिंग के लिए मशहूर थीं.

एक मंत्री के रनिवास की रानियों और महिलाओं से संबंध बन गए

इसी में एक थे वित्त मंत्री गजन्फर अली खां, वह बाद में पाकिस्तान के हाईकमिश्नर की हैसियत से भारत में तैनात भी हुए. महाराजा उन पर इतना विश्वास करने लगे थे कि उन्हें रनिवास में आने – जाने की खुली छूट थी. वह रंगीन मिजाज थे. आकर्षक व्यक्तित्व वाले. ये चर्चाएं आम थीं कि रनिवास की रानियों समेत कई स्त्रियों से उनके अंतरंग संबंध बन गए.

(picture generated Leonardo AI)

सभी अफसरों को बीवियों-बेटियों के साथ पार्टी में आना होता था

महाराजा की इन पार्टियों में अंग्रेज अफसरों को छोड़कर अपने सभी अफसरों और मंत्रियों की बीवियों और बेटियों को बुलाना अनिवार्य रखते थे. जिससे उनको लगता था कि जब सभी एक रंग में रंग जाएंगे तो कोई किसी का भंडाफोड़ क्या करेगा.

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दरबारी इस मंत्री से कुपित होने लगे

महाराजा की पार्टियों में इस मुस्लिम मंत्री के आसपास कई महिलाएं लगातार नजर आती थीं, जो उनके घेरे रखती थीं. इसे देखकर राज्य के दूसरे मंत्री और अफसर कुपित हो गए. गजन्फर अली खां ने महाराजा से कह रखा था कि उनका परिवार लाहौर में रहता है. सच्चा मुसलमान होने के नाते उनकी औरतें पर्दे में रहती हैं. उन्हें दूसरे मर्दों के सामने चेहरा दिखाने की आजादी नहीं है.

फिर कैसे उस मंत्री को फंसाने की योजना बनी

नाराज अफसरों ने मीटिंग की कि गजन्फर अली को कैसे घेरा जाए, क्योंकि वो पार्टियों की आड़ में रनिवास से लेकर सभी महिलाओं के साथ नजदीकी हासिल कर लेते थे. महिलाएं भी उनकी ओर भागती हैं. एक रोज जब महाराजा खुश मूड लग रहे थे, तब सबने अपनी बात रखी. महाराजा से शिकायत की गई कि गजन्फर क्या कर रहा है. जानबूझकर वह अपने घर की औरतों को इससे दूर रखता है. उसके परिवार की महिलाओं को भी बुलाया जाए.

दरबारियों और अफसरों ने शिकायत की कि खान हमारी औरतों से घुलते मिलते हैं. अंतरंग होते हैं लेकिन अपनी घर की औरतों को महल से दूर रखते हैं. महाराजा ने बात सुनी. पहले तो इससे चिढ़े लेकिन फिर शांत हो गए. उन्हें भी लगा कि ये लोग जो कह रहे हैं, वो ठीक ही है.

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महाराजा ने खान को हुक्म दिया हरहाल में बीवी को पार्टी में आएं

महाराना ने मंत्री खान को हुक्म दिया कि अगली बार जब महल में जलसा हो तो वह हर हाल में अपनी बेगम को उसमें जरूर लाएं. मंत्री ने बहाना बनाया. महाराजा ने एक नहीं सुनी. उन्हें राजी होना पड़ा कि एक महीने बाद जब महल में दीवाली का जलसा होगा तो वह अपनी बेगम को लेकर ही आएंगे. उन्होंने कुछ दिन की मोहलत मांगी, क्योंकि उनकी बेगम लाहौर में रहती थीं. महाराजा से इंतजाम करने के लिए कुछ पैसे मांगे.

तब उन्होंने दिल्ली में तवायफ से मुताह निकाह किया 

खान दिल्ली आए. परेशान से. करीबी दोस्तों को बताया कि उनकी बेगम कभी अलवर महाराज के जलसे में शामिल होने को तैयार नहीं होंगी. अगर वह बेगम को नहीं ले गए तो महाराजा उन्हें गिरफ्तार कराकर जेल में डाल देंगे. तब दोस्तों ने समझाया कि वह किसी खूबसूरत तवायफ से मुताह विवाह करके उन्हें बेगम बनाकर अलवर में पेश कर दें.

खान को ये आइडिया पसंद आ गया. तुरंत दिल्ली के कई कोठों को उन्होंने छान मारा. एक जगह एक निहायत हसीन और होशियार लड़की मिली. उसे सारा मामला बताकर उससे मुताह शादी की. मुताह की शर्तें तय की. फिर उसे कुछ दिनों तक दिल्ली के एक मकान में रखकर महल के जलसों में शामिल होने की ट्रेनिंग दी. फिर ट्रेन से अलवर पहुंच गए.

फिर बेगम के साथ अलवर पहुंचे

महाराजा भी खुश कि खान उनकी उम्मीदों पर खरे उतरे. खान नौकर-चाकरों के साथ अलवर पहुंचे. महाराजा ने स्टेशन पर जाकर खान और उनकी बेगम की अगवानी की. खान ने बेगम को कोठी में सेट किया. अब दरबार में बेगम की खूबसूरती के चर्चे होने लगे. दरबारी और अफसर ये सोच कर खुश हो रहे थे कि अब ऊंट आया पहाड़ के नीचे.

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बेगम की शोहबत से सभी खुश हो गए

उन्होंने सोच रखा था कि खान जिस तरह रनिवास की रानियों और महिलाओं के साथ साथ उनकी बीवियों से अंतरंग होते थे. कई के साथ रंगीनियां मना चुके थे, वैसा ही अब उनकी बेगम के साथ किया जाएगा. जलसे में खान नई बेगम के साथ पहुंचे. ट्रेनिंग तो उन्हें मिल ही चुकी थी. खान ने पार्टी में पूरे मजे लूटे तो बेगम ने भी दरबारी और अफसरों को खुश कर दिया. सभी बेगम की तारीफों के पुल बांधने लगे.

और फिर महाराजा को भेजा ये तार

इसके बाद बेगम वापस लौट गईं. खान ने उन्हें दिल्ली वापस उनके कोठे पर छोड़़ दिया. फिर उन्होंने पहले तो बेगम की गंभीर बीमारी का तार भेजा. फिर कुछ दिनों बाद दूसरा तार भेजा कि बेगम का इंतकाल हो गया. महाराजा और दरबारियों ने जब तार पढ़ा तो उन्हें बहुत अफसोस हुआ. उसके बाद पार्टियों में खान हमेशा अकेले ही आए. जब तक महाराजा की रियासत में रहे तब तक उसी तरह से आनंद लूटते रहे.



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