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भारत के ईवी बाजार में टेस्ला, BYD और अन्य विदेशी कंपनियों के लिए मुश्किलें बनी हुई हैं. टेस्ला की कारें महंगी हैं और भारत की नीतियां चीनी कंपनियों के लिए बाधा बन रही हैं. भारतीय कंपनियां मजबूत स्थिति में हैं और…और पढ़ें

हाइलाइट्स
- टेस्ला और BYD के लिए भारतीय बाजार में मुश्किलें.
- महिंद्रा और टाटा का भारतीय ईवी बाजार पर दबदबा.
- चीनी कंपनियों के निवेश पर भारत में प्रतिबंध.
JSW ग्रुप के चेयरमैन सज्जन जिंदल ने दो दिन पहले ही कहा है कि एलन मस्क वो चीजें नहीं बना सकते जो टाटा और महिंद्रा बना सकते हैं… क्योंकि वो अमेरिका में हैं और हम भारत में. जिंदल ने यह भी कहा कि टेस्ला भारत में किसी भी कंपनी के लिए कोई चुनौती नहीं बनने वाली. ध्यान रहे कि JSW ग्रुप खुद अपना ईवी ब्रांड लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है. इसी बीच एक रिपोर्ट आई है कि भारत के पैसेंजर्स व्हीकल (PV) सेक्टर में निकट भविष्य में विदेशी कंपनियों को ज्यादा सफलता नहीं मिलने वाली. एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, टेस्ला और BYD जैसी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश करना कठिन हो सकता है. इसी तरह, विनफास्ट और JSW MG जैसी नई कंपनियां भी ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएंगी.
इस रिपोर्ट में ऐसा चार मुख्य कारण बताए गए हैं-
पहला- भारत की सख्त ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) पॉलिसी.
दूसरा- चीनी कंपनियों के निवेश पर प्रतिबंध.
तीसरा- देश में ईवी की कम मांग (सिर्फ 2% बाजार हिस्सेदारी).
चौथा- लोकल प्रोडक्शन सेटअप में लगने वाला लंबा समय (लगभग 4 साल).
भारत में टेस्ला के सामने क्या हैं चुनौतियां
टेस्ला की सबसे सस्ती कार मॉडल 3 अमेरिका में करीब 30,000 डॉलर (लगभग 25 लाख रुपये) की है, जबकि भारत में ज्यादातर कारें 20 लाख रुपये से कम कीमत में बिकती हैं. इसके अलावा, टेस्ला के अन्य मॉडल जैसे मॉडल Y, मॉडल S और मॉडल X काफी महंगे हैं, जिससे आम भारतीय ग्राहकों के लिए इन्हें खरीदना मुश्किल हो जाता है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, टेस्ला की महंगी कीमतें, ऊंची आयात शुल्क दरें और भारतीय ग्राहकों की प्राथमिकताएं इस कंपनी के लिए मुश्किलें पैदा कर रही हैं. भले ही टेस्ला एक सस्ती कार लॉन्च करे, फिर भी उसे भारतीय कंपनियों से कड़ी टक्कर मिलेगी.
चीनी कंपनियों के सामने निवेश की मुश्किलें
भारत सरकार के सख्त विदेशी निवेश नियम चीनी कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं. BYD और MG (अब JSW MG) जैसी कंपनियों को इन प्रतिबंधों की वजह से दिक्कत हो रही है. MG मोटर की भारतीय बाजार में हिस्सेदारी सिर्फ 1.5 फीसदी है, जिसका मुख्य कारण निवेश में आने वाली बाधाएं और सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों पर ध्यान केंद्रित करना है.
इसके अलावा, चीन से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को भारत में विशेष अनुमति की जरूरत होती है, जिसे PN3 प्रक्रिया के तहत मंजूरी दी जाती है. इस वजह से चीनी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में अपना दबदबा बनाना आसान नहीं है.
विनफास्ट की भारत में योजना
इकॉनमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वियतनाम की कंपनी विनफास्ट तमिलनाडु में 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर प्लांट लगाने की योजना बना रही है. इस प्लांट से सालाना 50,000 गाड़ियों का उत्पादन किए जाने की योजना है और 2025 के अंत तक VF6 और VF7 इलेक्ट्रिक एसयूवी लॉन्च करने की योजना है. हालांकि, कंपनी की वित्तीय स्थिति कमजोर है और उसके शेयर की कीमत 80% तक गिर चुकी है, जिससे उसके लॉन्ग टर्म भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं.
भारत की ईवी नीति और बाजार की सीमाएं
भारत की नई ईवी नीति के तहत 35,000 डॉलर (लगभग 30 लाख रुपये) से महंगी कारों पर आयात शुल्क को घटाकर 15 फीसदी किया गया है, लेकिन यह छूट सिर्फ 8,000 गाड़ियों तक सीमित है. प्रीमियम सेगमेंट में सालाना केवल 45,000 गाड़ियां बिकती हैं और इसमें टोयोटा का दबदबा 80 फीसदी से ज्यादा है. ऐसे में, नए ब्रांड्स के लिए बाजार में जगह बनाना मुश्किल होगा.
भारतीय ऑटो कंपनियों का आत्मविश्वास
महिंद्रा एंड महिंद्रा के ऑटो और फार्म सेक्टर के सीईओ राजेश जेजुरिकर ने कहा कि भारतीय कंपनियों को किसी विदेशी ब्रांड से डरने की जरूरत नहीं है. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा, “अगर वे आकर भारत में हमारे जैसे किफायती वाहन बना सकते हैं, तो जरूर बनाएं. लोकल प्रोडक्शन के बाद भी वे हमसे मुकाबला कर सकते हैं या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा.”
महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने भी भरोसा जताया कि भारतीय कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, “1991 में जब भारतीय बाजार खुला था, तब भी यही सवाल पूछा गया था कि हम विदेशी कंपनियों से कैसे मुकाबला करेंगे. लेकिन हम तब भी थे और आगे भी रहेंगे.”
New Delhi,New Delhi,Delhi
March 07, 2025, 17:48 IST